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1.75 करोड़ मतदाता तय करेंगे बिहार की किस्मत,जानिए किसे मिलेगा मौका?

1.75 करोड़ मतदाता तय करेंगे बिहार की किस्मत,जानिए किसे मिलेगा मौका?
  • PublishedOctober 25, 2025

2020 के चुनाव में तेजस्वी का एक हेलीकॉप्टर उड़ रहा था और एनडीए का 40. ऐसा तंज राजनीतिक व्यंगकार ने किए थे. और अंत में मगध के साथ साथ शाहाबाद में तेजस्वी इस कदर छाए की बड़ी मुश्किल से एनडीए सत्ता में आई . नीतीश कुमार पलटे तो तेजस्वी भी 18 महीना सत्ता में रहे. विगत चुनाव में तेजस्वी की चुनावी सभाओं में युवा ज्यादा जुड़ रहे थे. नौकरी का वायदा और नीतीश कुमार के खिलाफ गुस्सा ने तेजस्वी को लगभग ताज के निकट पहुंचा दिया था .यही चिंता इस बार एनडीए को सता रही है. पीएम नरेंद्र मोदी , अमित शाह और नीतीश जी के साथ अलग अलग अन्य सभी एनडीए बड़े नेता चुनावी सभा में बड़ी तैयारी से कूद चुके हैं. लगभग सभी नेता आज से 20 वर्ष पूर्व की लालू राज पर हमला कर रहे हैं. अमित शाह सिवान में दिवंगत शहाबुद्दीन की चर्चा कर रहे हैं. अब इसमें पुनः यह सवाल उठता है कि क्या नई पीढ़ी जिनकी उम्र 30 से कम है, जिनका जन्म ही नीतीश राज में हुआ है या जिनको राजनीतिक या सामाजिक समझ ही पिछले 20 वर्षों में हुआ है, वो किधर जायेंगे ?

क्या उनको जंगलराज की त्रासदी को कहानी और कथा के रूप में इंजेक्ट कर के उनके वोट को एनडीए अपने पाले ला सकता है? लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि वोटर कैसे सोचता है ? उसके इर्द गिर्द का वातावरण कैसा है? उसने स्वयं को कैसा महसूस किया है? मैं एक सवर्ण हूं लेकिन मेरे पुत्र को तेजश्वी के माता पिता से कष्ट नहीं है. मेरे पुत्र को जंगलराज की कहानियों से मतलब नहीं है. उसे लगता है की तेजस्वी की सोच उसके सोच से नज़दीक है।यह बिल्कुल ऐसी ही बात है कि हमसे ऊपर वाली पीढ़ी सन 1975 के आपातकाल के किस्से सुनाती रही और मेरी पीढ़ी उसे सुन कर भी कुछ समझ नहीं पाए. मेरी पीढ़ी डॉ जगनाथ मिश्रा , बिदेश्वरी दुबे, लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के शासन पर अपना मत बनाई ना कि सन 1975 के आपातकाल पर. पुरानी पीढ़ी आपातकाल को भी आधार बनाई लेकिन वही आधार वो हम पीढ़ी पर नहीं थोप सकी. मेरा यह मानना है कि नई पीढ़ी अपने ढंग से सोचेगी. एक जबरदस्त टैक्स कलेक्शन ने देश में विकास की लहर पैदा की है तो मोदी जी भी नई पीढ़ी के नायक होंगे लेकिन सिर्फ़ जंगलराज के आधार पर नई पीढ़ी तेजस्वी को खलनायक नहीं बनाने जा रही है. प्रशांत किशोर बड़ी तेजी से युवाओं को आकर्षित किए. हर धर्म, हर जाति और हर वर्ग में. लेकिन जिस तरह का जन सैलाब वो अपनी सभाओं में लाए, उसी अनुरूप वो उम्मीदवार नहीं बना सके. अगर वो इस एंगल पर काम करते तो युवा पीढ़ी उनके पीछे खड़ी थी. करीब 1.75 करोड़ युवा मतदाता है . अधिकांश के हाथ में स्मार्टफोन है. वो पल भर में समस्त दुनिया देख रहे हैं. नेताओं में वो अपनी छवि तलाश रहे हैं. उनकी समझ में परिपक्वता है. अब इस पीढ़ी को सन 1957 के पहले का जमींदारी और सामंतवाद को समझा पाना कितना मुश्किल है. अब तेजस्वी का दल भी 70 वर्ष पूर्व का सामंतवाद पर हमला बंद कर चुका है. पिछले चुनाव जहानाबाद में तेजस्वी ने ‘ बाबूसाहब ‘ शब्द का उच्चारण नकारात्मक अंदाज़ में किया और उसका असर उत्तर बिहार में हुआ. एक ही हेलीकॉप्टर से समस्त बिहार में छा जाने वाले सत्ता से बस 6 सीट दूर रह गए. तो सवाल उठता है की लहर विहीन इस चुनाव में बिहार के युवा किस ओर रूख लेंगे ? धर्म , जाति या फिर भविष्य ? यह सवाल अपने आप में इस चुनाव के सभी स्टेकहोल्डर को परेशान कर रखा है।

Written By
Aagaaz Express

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