शायरों के शौकीन थे मनमोहन सिंह,संसद में सुषमा स्वराज से हुई थी ‘शायराना’ नोकझोंक

दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक महान अर्थशास्त्री के रूप में जानती है, लेकिन बहुत कम लोग उनके के शायराना अंदाज से परिचित हैं. इसकी एक झलक उस समय देखने को मिली, जब उर्दू शायरी के शौकीन मनमोहन सिंह ने लोकसभा में दिवंगत भारतीय जनता पार्टी की नेता सुषमा स्वराज के साथ शायरना बहस हुई।इन भाषणों के वीडियो यूट्यूब और सोशल मीडिया पर सबसे अधिक देखी जाने वाली संसदीय बहसों में से हैं. बता दें कि 2011 में लोकसभा में एक तीखी बहस के दौरान, तत्कालीन विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने वाराणसी में जन्मे कवि शहाब जाफरी के शेर से मनमोहन सिंह पर निशाना साधा था, जिनकी सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरने लगी थी।

सुषमा स्वराज ने मनमोहन सिंह पर निशाना साधते हुए कहा, “तू इधर उधर की ना बात कर, यह बता कि काफिला क्यों लूटा, हमें राहजनो से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है.” इस पर आमतौर पर शांत रहने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोई उग्र बयान नहीं दिया. इसके बजाय, उन्होंने आग में घी डालने के लिए अल्लामा इकबाल की शायरी पढ़ने का फैसला किया. उन्होंने कहा, “माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक देख मेरा इंतजार देख।सिंह और स्वराज दोनों ही साहित्य के शौकीन हैं. दोनों नेता 2013 में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव को लेकर बहस में एक बार फिर आमने-सामने आए. इस बार, पहला शॉट प्रधानमंत्री की ओर से था. सिंह ने खुद को मिर्जा गालिब की नजम पढ़ते हुए कहा, “हमको उनसे वफा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है.”इस पर जवाब देने के लिए स्वराज ने बशीर बद्र का शेर सुनाया और कहा कि, “कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं कोई बेवफा नहीं होता.”इसके बाद एक अवसर पर, जब पत्रकारों ने मनमोहन सिंह से उनकी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में पूछा, तो फिर से उनका शायराना अंदाज नजर आया. उन्होंने कहा , “हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, जो कई सवालों की आबरू लेती है।