Blog

उत्तराखंड सरकार के खिलाफ कोर्ट जाएगी जमीयत उलेमा,UCC लागू करने के फैसले को कोर्ट में देगी चुनौती

उत्तराखंड सरकार के खिलाफ कोर्ट जाएगी जमीयत उलेमा,UCC लागू करने के फैसले को कोर्ट में देगी चुनौती
  • PublishedJanuary 28, 2025

उत्तराखंड में सोमवार 27 जनवरी से समान नागरिक संहिता लागू हो गई है. इसको लेकर मुस्लिम संगठनों ने नाराजगी जाहिर की है. उनका कहना है कि ऐसा करके न केवल नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला किया गया है, बल्कि यह कानून पूरी तरह से भेदभाव और पूर्वाग्रह पर आधारित है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद सरकार के इस फैसले को नैनीताल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों में चैलेंज करेगी.जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी के मार्गदर्शन पर जमीयत इसे चैलेंज करेगी. जमीयत के वकीलों ने इस कानून के संवैधानिक और कानूनी पहलुओं की गहन जांच की है. संगठन का मानना है कि चूंकि यह कानून भेदभाव और पूर्वाग्रह पर आधारित है, इसलिए इसे समान नागरिक संहिता नहीं कहा जा सकता. एक और महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि क्या किसी राज्य सरकार को ऐसा कानून बनाने का अधिकार है.

‘शरीयत के खिलाफ कानून स्वीकार्य नहीं’उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने के राजय सरकार के फैसला पर मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमें कोई ऐसा कानून स्वीकार्य नहीं जो शरीयत के खिलाफ हो, क्योंकि मुसलमान हर ची से समझौता कर सकता है लेकिन अपनी शरीयत से कोई समझौता नहीं कर सकता. उन्होंने कहा कि आज उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता कानून में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366, खंड 25 के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों को छूट दी गई है और तर्क दिया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत उन के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की गई है .मौलाना मदनी ने सवाल उठाया कि अगर संविधान की एक धारा के तहत अनुसूचित जनजातियों को इस कानून से अलग रखा जा सकता हैए तो हमें संविधान की धारा 25 और 26 के तहत धार्मिक आज़ादी क्यों नहीं दी जा सकती है, जिसमें नागरिकों के मौलिक अधिकारों को मान्यता देकर धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है. तो इस प्रकार देखा जाए तो समान नागरिक संहिता मौलिक अधिकारों को नकारती है. उन्होंने कहा कि यदि यह समान नागरिक संहिता है तो फिर नागरिकों के बीच यह भेदभाव क्यों. मदनी ने कहा कि उनकी कानूनी टीम ने कानूनी पहलुओं की समीक्षा की है और जमीयत उलेमा-ए-हिंद इस फैसले को नैनीताल उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में एक साथ चुनौती देने जा रही है.‘देश की एकता और अखण्डता के लिए हानिकारक’मौलाना मदनी ने कहा कि सच तो यह है कि किसी भी धर्म का अनुयायी अपने धार्मिक मामलों में किसी भी तरह का अनुचित हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर सकता. भारत जैसे बहुधर्मी देश में जहां विभिन्न धर्मों के मानने वाले सदियों से अपनी अपनी धार्मिक मान्यताओं का पूरी आजादी के साथ पालन करते हैं वहां समान नागरिक संहिता संविधान में नागरिकों को दिए गए मूल अधिकारों से टकराता है. उन्होंने कहा कि सवाल मुसलमानों के पर्सनल लॉ का नहीं बल्कि देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान को अपनी हालत में बाकी रखने का है, क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और संविधान में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यह है कि देश का अपना कोई धर्म नहीं है, इसलिए समान नागरिक संहिता मुसलमानों के लिए अस्वीकार्य है और देश की एकता और अखण्डता के लिए भी हानिकारक है.उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए धारा 44 को प्रमाण के रूप में प्रसतुत किया जाता है और यह प्रोपेगेंडा किया जाता है कि समान नागरिक संहिता की बात तो संविधान में कही गई है, जबकि धारा 44 दिशा निर्देश नहीं है, बल्कि एक सुझाव है, लेकिन संविधान की धारा 25, 26 और 29 का कोई उल्लेख नहीं होता जिनमें नागरिकों के मूल अधिकारों को स्वीकार करते हुए धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है, इस तरह देखा जाए तो समान नागरिक संहिता मूल अधिकारों को नकारता है, फिर भी हमारी सरकार कहती है कि एक देश में एक कानून होगा और यह कि एक घर में दो कानून नहीं हो सकते, यह अजीब बात है.

Written By
Aagaaz Express

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *