चुनाव से पहले नीतीश कुमार का ये दांव कहीं उल्टा न पड़ जाए,जान लीजिए क्या है पूरा मामला?

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के ‘बेताज बादशाह’ माने जाते हैं. दो दशक से सूबे की सत्ता पर विराजमान हैं. इस दौरान उनको पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के साथ-साथ अगड़ी जातियों का भी भरपूर साथ मिलता रहा लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में समर्थन में कमी आई. जेडीयू को सवर्णों की नाराजगी का खामियाजा उठाना पड़ा और पार्टी 71 से 43 सीटों पर आकर सिमट गई. यही वजह है कि सवर्ण समाज को साधने के लिए लगातार कोशिशें हो रही हैं. इसी क्रम में राज्य सवर्ण आयोग का गठन किया गया है। नीतीश कुमार जब एनडीए में रहते हैं तो उनको सवर्ण वोटरों का साथ मिलता है, वहीं जब वह महागठबंधन के साथ होते हैं तो विरोध में तमाम अगड़ी जाति गोलबंद हो जाती है. 2020 के विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड ने 115 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे लेकिन ज्यादातर सीटों पर सवर्ण वोटरों का साथ नहीं मिला. जिस वजह से जेडीयू 43 सीटों पर सिमट गया. इसके पीछे की वजह ये थी कि चिराग पासवान ने जेडीयू के खिलाफ अधिकतर सीटों पर सवर्ण उम्मीदवार उतार दिए।2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी जनता दल यूनाइटेड को बीजेपी के मुकाबले सवर्णों के कम वोट मिले. भूमिहार बहुल जहानाबाद जैसी सीट भी जेडीयू हार गई. पूर्णिया में अगड़ी जातियों ने संतोष कुशवाहा की बजाय निर्दलीय पप्पू यादव का साथ दिया. यही स्थिति कटिहार में भी रही, जहां कांग्रेस कैंडिडेट को बड़ी तादाद में अगड़ी जातियों के वोट मिले. जिन सीटों पर जेडीयू की जीत भी हुई, वहां मार्जिन काफी कम रहा था।अगड़ी जातियों की नाराजगी दूर करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार कदम उठा रहे हैं. लोकसभा चुनाव के बाद ललन सिंह को जहां मोदी मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बनाया गया है, वहीं संजय कुमार झा को जेडीयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई है. वहीं, अब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार राज्य सवर्ण आयोग का गठन किया गया है. बीजेपी नेता महाचंद्र प्रसाद सिंह को अध्यक्ष और जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद को उपाध्यक्ष बनाया गया है. इसके अलावे दयानंद राय, जय कृष्ण झा और राजकुमार सिंह को सदस्य नियुक्त किया गया है।बिहार जातीय गणना के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में अगड़ी जातियों की तादाद 15.52 फीसदी है. इनमें भूमिहार 4.7 प्रतिशत, राजपूत 5.2%, ब्राह्मण 5.7 और कायस्थ 0.60 फीसदी है.

हालांकि पिछड़े-अति पिछड़े और दलित पिछले वोट बैंक की तुलना में बिहार में अगड़ी जातियों की संख्या कम है लेकिन समाज में इनका दबदबा है, जिस वजह से राजनीति तौर पर सवर्ण बेहद प्रभावशाली वोट बैंक है।243 सदस्यीय विधानसभा में एक चौथाई विधायक सवर्ण समाज से आते हैं. 2020 के चुनाव परिणाम के मुताबिक 64 विधायक अगड़ी जाति से आते हैं. इनमें राजपूत जाति से 28, भूमिहार जाति से 21, ब्राह्मण जाति से 12 और कायस्थ जाति से 3 विधायक हैं।जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार का दावा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वोट बैंक के लिए नहीं, बल्कि समाज के हर तबके के विकास के लिए चिंता करते हैं. वे कहते हैं कि हमारी सरकार ने सवर्णों के हित में पहले भी कई बड़े फैसले लिए, जिसका फायदा हुआ. वहीं केंद्र की मोदी सरकार ने गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण दिया. वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल ने आरक्षण का विरोध किया था।