सैलरी के बोझ से परेशान हुई बिहार सरकार,5 साल में खर्च का बजट हुई दोगुना!

नीतीश सरकार की ओर से नौकरी और रोजगार को लेकर जो वादा किया गया, उसके कारण सैलरी पर खर्च पिछले 5 सालों में ही दोगुनी हो गयी है. बिहार का बजट पिछले 5 सालों में दोगुना नहीं हुआ है लेकिन सैलरी के कारण खजाने पर पड़ने वाला बोझ जरूर दोगुना हो गया है. विशेषज्ञों के अनुसार सरकार ने वित्त प्रबंधन नहीं की और अपना राजस्व नहीं बढ़ाई तो सैलरी पर जिस प्रकार से खर्च बढ़ रहा है, उसका सीधा असर विकास योजनाओं पर पड़ेगा. विकास की कई योजनाएं लटक सकती है।विशेषज्ञों के अनुसार अभी सैलरी पेंशन कर्ज को लेकर बिहार सरकार राशि खर्च कर रही है, वह बजट का 45% है और यह एक चिंताजनक स्थिति है, क्योंकि 55% में ही विकास की योजनाओं पर और सभी दूसरे खर्च करने पड़ रहे हैं. ऐसे में सरकार के लिए आने वाला समय एक बड़ा चुनौती भरा होगा. यदि सरकार पर्याप्त राशि जुटा नहीं पाई तो सीधा असर विकास योजनाओं पर पड़ने वाला है।बिहार में नौकरी रोजगार को लेकर नीतीश सरकार की तरफ से जो वादे किए गए हैं, उसका असर दिख रहा है. नीतीश सरकार ने 12 लाख नौकरी और 34 लाख रोजगार देने का वादा किया है. इसमें से 9 लाख से अधिक नौकरी और 24 लाख से अधिक रोजगार नीतीश सरकार की तरफ से देने का दावा किया जा रहा है. इसके बाद करीब 3 लाख नौकरी और 10 लाख रोजगार और देना है.

नीतीश सरकार के नौकरी और रोजगार के वादे का असर सरकार के खजाने पर भी पड़ता दिख रहा है।पिछले 5 सालों में ही सैलरी मद की राशि बढ़कर दोगुनी से अधिक हो चुकी है. अगर पिछले 5 सालों के आंकड़े को देखें तो 2020-21 में 20658 करोड़ की राशि सैलरी मद में सरकार को खर्च करनी पड़ रही थी, लेकिन अब यह बढ़कर 40559 करोड़ से अधिक हो चुकी है. वहीं बिहार के बजट का आकार देखें तो 2021-22 में 218000 करोड़ था, जो 2024-25 में बढ़कर 278000 करोड़ हुआ है. यानी बजट आकार दोगुना नहीं हुआ है लेकिन सैलरी मद की राशि दोगुनी हो चुकी है।विकास की कई योजनाओं की घोषणा के बाद भी उसे जमीन पर उतारना संभव नहीं होगा. विकास की कई योजनाएं आधी-अधूरी रह सकती है. केंद्रीय योजनाओं में बिहार को 50% से लेकर 60% तक की राशि सहयोग देना पड़ता है, उन योजनाओं पर भी काफी असर पड़ेगा. कर्मचारियों को समय पर वेतन मिलना मुश्किल होगा. स्वास्थ्य, शिक्षा और समाज के जनकल्याण की योजनाओं पर भी सीधा असर पड़ सकता है।