उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का देश की मौजूदा राजनीति पर अपनी बात रखी है. उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक राजनीति संवाद से पनपती है. अभिव्यक्ति और विमर्श लोकतंत्र के लिए मौलिक हैं. यदि हमारे पास अभिव्यक्ति का अधिकार नहीं है तो हम लोकतंत्र में रहने का दावा नहीं कर सकते. हालांकि, संवाद के बिना अभिव्यक्ति अधूरी है. उपराष्ट्रपति ने दिल्ली में भारतीय विद्या भवन में नंदलाल नुवाल सेंटर ऑफ इंडोलॉजी की आधारशिला रखने के बाद यह बात कही.उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि संवाद का अभाव सर्वनाशी हो सकता है. संवाद का अभाव लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए घातक हो सकता है. अलग-अलग दृष्टिकोणों पर विचार करना ही लोकतंत्र का अमृत है. लोकतंत्र भय या उपहास से मुक्त, समावेशी संवाद से फलता-फूलता है.’धनखड़ ने कहा कि हमारी इंडोलॉजिकल विरासत पर एक नजर डालने से पता चलता है कि मुद्दों को हल करने के लिए जो उपाय अपनाए जाते थे वो बातचीत और प्रवचन केंद्रीत थे. हमारे धर्म ग्रंथ और इतिहास इस बात पर जोर देते हैं कि संवाद से संघर्ष सुलझता है और समाज कायम रहता है.उन्होंने कहा कि यह हास्यास्पद बात है कि अज्ञानी अपने संकीर्ण दृष्टिकोण से हमें समावेशिता के बारे में जागरूक करने की कोशिश करते रहे हैं.

देश के इतिहास का पहला मसौदा उपनिवेशवादियों के विकृत दृष्टिकोण के माध्यम से आया था. हजारों लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया लेकिन कुछ को ही बढ़ावा दिया गया और आजादी के बाद भी इसे जड़ें जमाने दिया गया.युवाओं से भारत के गणितीय योगदान पर गर्व करने की अपीलधनखड़ ने जोर देकर कहा कि वेदांत, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और अन्य के दार्शनिक संस्थानों ने हमेशा संवाद और सह-अस्तित्व को प्रोत्साहित किया है और यही वे सिद्धांत हैं जो आज की ध्रुवीकृत दुनिया में अत्यधिक मूल्य रखते हैं. युवाओं से भारत के गणितीय योगदान पर गर्व करने का आग्रह करते हुए धनखड़ ने कहा कि अब समय आ गया है कि भारत की विरासत फले-फूले और आगे बढ़े.