जातीय जनगणना कराने के पीछे की ये है पूरी कहानी?बिहार चुनाव से पहले मोदी सरकार का काम आएगा ये बड़ा दांव!

मोदी सरकार ने देश की अगली जनगणना में जातिवार गिनती कराने का फैसला किया है. बुधवार को पीएम मोदी की अध्यक्षता में हुए सीसीपीए बैठक में जातिगत जनगणना कराने पर फाइनल मुहर लगी. केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बैठक में लिए गए फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि मोदी सरकार अगली जनगणना के साथ जातीय आधार पर भी लोगों की गणना की जाएगी. सरकार के इस कदम से देश में किस जाति के कितने लोग हैं और सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से उनकी स्थिति क्या है, ये जानकारी आजाद भारत में पहली बार सामने आएगी।आजादी के बाद भले ही पहली बार देश में जातीय आधार पर गणना होने जा रही है, लेकिन उससे पहले जातीय आधार पर जनगणना होती रही है. देश में आखिरी बार जातिगत जनगणना गणना 1931 में कराई गई थी. इसके बाद से हर दस साल पर जनगणना होती थी, लेकिन जाति के आधार पर लोंगों की गिनती नहीं होती थी. इस तरह से देश में 94 सालों तक जातिगत जनगणना रुकी हई थी, देश में कांग्रेस और बीजेपी दोनों की सरकारें आईं, लेकिन जातीय की गणना नहीं हुई.

ऐसे में कर्नाटक, बिहार और तेलंगाना में राज्य सरकारों के द्वारा जातिगत सर्वे कराने के बाद मोदी सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर जातिवार जनगणना के लिए तैयार हुई है?देश या किसी क्षेत्र में रहने वाले लोगों की गणना और उनके बारे में विधिवत रूप से सूचना प्राप्त करना जनगणना कहलाती है. भारत में हर 10 साल में एक बार जनगणना की जाती है. आजादी से पहले साल 1853 में नॉर्थ वेस्टर्न प्रॉविंसेज में अंग्रेजों ने पहली जनगणना कराई थी, लेकिन देशभर में 1872 में जनगणना कराई गई. इसके बाद ही अंग्रेजों ने जातिवार गणना के बारे में विचार-विमर्श किया. तब के जनगणना प्रशासक रहे एच एच रिजले की अगुवाई में फोकस किया गया कि पहले यह तय हो कि किसे किस जाति का माना जाए. रिजले ने वर्ण व्यवस्था और पेशे के आधार पर अलग-अलग जाति समूह बनाए, जिनमें कई जातियों को शामिल कर लिया।