बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी प्रदेश में सक्रिय हो गए हैं.पूर्णिया के बायसी विधानसभा क्षेत्र के बेलगच्छी में ओवैसी ने जनसभा की. इसमें पहुंचे स्थानीय युवक मोहम्मद रकीबुल कहते हैं, “हम अब तक इस्तेमाल होते रहे हैं. बैरिस्टर साहब ओवैसी हमारे सच्चे रहनुमा हैं. वे सीमांचल की बदहाली और गरीबी की बात करते हैं, पलायन दूर करने की बात करते हैं. हम 18 फीसदी हैं, हमें रहनुमाई का मौका मिलना चाहिए. हमें ओवैसी साहब जैसा हिम्मत वाला और हमारी हक-हकूक की बात करने वाला नेता चाहिए.जनसैलाब का आलम, उम्मीदों से लबरेज युवा तो कहीं गुरबत के कारण उम्र से अधिक दिखते बुजुर्ग चेहरे. किशनगंज से कटिहार तक ओवैसी की जनसभाओं में करीब -करीब एक जैसा मंजर देखने को मिलता है. ओवैसी जब आक्रामक तरीके से सीमांचल के साथ हुई नाइंसाफी की बात करते हैं या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तेजस्वी यादव पर निशाना साधते हैं तो खूब तालियां भी बजती है।ऐसे में क्या यह माना जाए कि सचमुच ओवैसी आज भी सीमांचल में साल 2020 की तरह ही लोकप्रिय हैं.

अगर ऐसा है तो फिर क्या एआईएमआईएम 2020 की तरह ही तेजस्वी के मंसूबों पर पानी फेरने में कामयाब हो जाएंगे? अगर इसका जवाब भी हां है तो सवाल है कि आखिर क्यों महागठबंधन, एआईएमआईएम को गले लगाने को तैयार नहीं है. हालांकि यह कहना गलत नहीं होगा कि ओवैसी अपनी चार दिवसीय सीमांचल यात्रा में दूरगामी राजनीतिक प्रभाव छोड़ गए हैं और अगर इस तरह ओवैसी का ‘टशन’ बना रहा तो वे बिहार विधानसभा चुनाव में गेमचेंजर साबित हो सकते हैं.ओवैसी की चार दिवसीय सीमांचल न्याय-यात्रा का समापन हो गया है। किशनगंज से शुरू हुआ यह कारवां कटिहार के बलिरामपुर में समाप्त हुआ. इस दौरान उन्होंने 9 विधानसभा क्षेत्रों के एक दर्जन से अधिक स्थानों में नुक्कड़-सभा का आयोजन किया. इन सभाओं में उनका संदेश साफ था कि वे इस बार सीमांचल की 24 में से अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. इसका ठीकरा भी ओवैसी तेजस्वी यादव पर फोड़ते हैं और कहते हैं, “हम सेक्युलर वोटों का बंटवारा नहीं चाहते हैं, लेकिन कथित सेक्युलरवादी पार्टियों ने हमारे प्रस्ताव को खारिज कर दिया. हम जीतने के लिए चुनाव लड़ेंगे. सियासत में मुहब्बत नहीं होती है.” अहम है कि ओवैसी ने उन्हीं विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया, जहां मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक या निर्णायक है. जाहिर है एआईएमआईएम को बखूबी पता है कि किस तरह से स्ट्राइक-रेट बेहतर बनाया जा सकता है।सीमांचल न्याय यात्रा में जिस तरह ओवैसी की सभाओं में भीड़ उमड़ती रही है, उससे एआईएमआईएम के हौसले बुलंद हैं तो दूसरी ओर एनडीए और महागठबंधन खेमे में अंदरखाने बेचैनी है. हालांकि भीड़ हमेशा वोट की गारंटी नहीं होती है. अल्पसंख्यक वोट के बारे में कहा जाता है कि वह उसी के खाते में जाता है जो भाजपा को हराने की स्थिति में होता है. वर्ष 2020 से वर्ष 2025 की तुलना करें तो वक्फ बिल, एसआईआर और घुसपैठ मुद्दे के बाद परिस्थितियां कुछ बदली हुई नजर आ रही हैं।साल 2020 में महागठबंधन के कुल वोट पूरे राज्य में एनडीए से केवल 12 हजार कम थे. यही वजह रही कि महागठबंधन सरकार बनाने से दो कदम दूर रह गया था, जिस तरह से एआईएमआईएम की सभा में भीड़ देखी जा रही है, क्या उससे राहुल गांधी और तेजस्वी यादव अनभिज्ञ हैं. निश्चित रूप से यह बात बेमानी है, तो क्या माना जाए कि यह अनदेखी रणनीति का हिस्सा है. राहुल और तेजस्वी की भी पैनी नजर सीमांचल पर है और उन्हें बखूबी पता है कि एआईएमआईएम की वजह से उन्हें कितना नुकसान हो सकता है।