मणिपुर में मुख्यमंंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद केंद्र सरकार ने वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया है. मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने का विपक्षी पार्टियों ने विरोध किया है और केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है. मैतई समुदाय के संगठन मणिपुर अखंडता पर समन्वय समिति ने अब राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने को “अलोकतांत्रिक” और “सबसे दुर्भाग्यपूर्ण” करार दिया है.मैतेई निकाय ने आरोप लगाया कि राज्य को और अधिक अशांति में धकेला जा रहा है. राष्ट्रपति शासन लगाया जाना एक चाल है.मणिपुर अखंडता पर समन्वय समिति की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि राज्य में भाजपा का पूर्ण बहुमत है. भारत सरकार ने मणिपुर में अनुचित तरीके से राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया है. यह मणिपुर को और अधिक अशांति में धकेलने की चाल है.बता दें पिछले दो साल से मणिपुर में मैतई और कुकी समुदाय के बीच हिंसक झड़प चल रही है.

इस झड़प में सैंकड़ों लोगों की जान गई है और हजारों की संख्या में लोग विस्थापित होने के लिए बाध्य हुए हैं.मणिपुर अखंडता पर समन्वय समिति का दावा है कि वास्तविक मुद्दों को संबोधित करने के बजाय भाजपा विधायकों की कथित अक्षमता पर दोष मढ़ा गया है. राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए लोगों को कोई उचित स्पष्टीकरण भी नहीं दिया गया. राज्य विधानसभा सत्र से ठीक पहले मुख्यमंत्री से जबरन इस्तीफा ले लिया गया है. यह लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ पूरी तरह से विश्वासघात है.उन्होंने इसे सत्ता हथियाने का प्रयास करार देते हुए कहा कि विशेष रूप से मैतेई समुदाय को सीधे सैन्य नियंत्रण में रखने के एजेंडा है. यह निर्णय कुकी उग्रवादियों और अलगाववादी समूहों की लंबे समय से चली आ रही मांगों से मिलती है. ये संगठन मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने और AFSPA की वकालत कर रहे हैं.बता दें कि मणिपुर में जातीय हिंसा के बाद मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद विधानसभा को निलंबित कर दिया गया था. इससे राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता पैदा हो गई. पूर्वोत्तर प्रभारी संबित पात्रा और विधायकों के बीच कई दौर की बातचीत हुई, लेकिन बातचीत में सीएम पद के चेहरे को लेकर सहमति नहीं बनी. उसके बाद केंद्र सरकार ने वहां राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला किया है. बता दें कि मणिपुर विधानसभा का कार्यकाल 2027 तक का है.