आज है नवरात्रि का चौथा दिन,मां कुष्मांडा की होगी पूजा,जानें आरती,मंत्र और कथा

आज चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन और आज ही मां दुर्गा के चौथे स्वरूप कुष्मांडा की पूजा आराधना की जाएगी. इस दिन माता के भक्त पूरे परिवार के साथ विधि विधान के साथ माता दुर्गा की पूजा करते हैं और सभी के मंगल की कामना करते हैं. देवी कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है और माता के इस स्वरूप को पीले फल, पीले फूल और पीले वस्त्र अर्पित करते हैं. कुष्मांडा माता की पूजा अर्चना करने से सभी रोग व कष्ट दूर हो जाते हैं और माता के आशीर्वाद से हर कार्य सिद्ध होते हैं. आइए जानते हैं मां कुष्मांडा देवी की पूजा विधि, मंत्र, भोग और आरती…

मां कुष्मांडा पूजा मंत्र:
1- बीज मंत्र: कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:
2- ध्यान मंत्र: वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
3- पूजा मंत्र: ॐ कुष्माण्डायै नम:
4- या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
5- ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।
मां कुष्मांडा की आरती:
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
मां कुष्मांडा व्रत कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार जब सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तब एक ऊर्जा, गोले के रूप में प्रकट हुई. इस गोले से बेहद तेज प्रकाश उत्पन्न हुआ और देखते ही देखते ये नारी के रूप में परिवर्तित हो गया. माता ने सबसे पहले तीन देवियों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती को उत्पन्न किया. महाकाली के शरीर से एक नर और नारी उत्पन्न हुए. नर के पांच सिर और दस हाथ थे, उनका नाम शिव रखा गया और नारी का एक सिर और चार हाथ थे, उनका नाम सरस्वती रखा गया. महालक्ष्मी के शरीर से एक नर और नारी का जन्म हुआ. नर के चार हाथ और चार सिर थे, उनका नाम ब्रह्मा रखा और नारी का नाम लक्ष्मी रखा गया. फिर महासरस्वती के शरीर से एक नर और एक नारी का जन्म हुआ. नर का एक सिर और चार हाथ थे, उनका नाम विष्णु रखा गया और महिला का एक सिर और चार हाथ थे, उनका नाम शक्ति रखा गया।इसके बाद माता ने ही शिव को पत्नी के रूप में शक्ति, विष्णु को पत्नी के रूप में लक्ष्मी और ब्रह्मा को पत्नी के रूप में सरस्वती प्रदान कीं. ब्रह्मा को सृष्टि की रचना, विष्णु को पालन और शिव को संहार करने का जिम्मा सौंपा. इस तरह संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना मां कूष्मांडा ने की. ब्रह्मांड की रचना करने की शक्ति रखने वाली माता को कूष्मांडा के नाम से जाना गया।