आज एक साथ करें मां ब्रह्मचारिणी और मां चंद्रघंटा की पूजा,पढ़ें मंत्र और आरती

आज, यानी सोमवार 31 मार्च को चैत्र नवरात्रि का दूसरा है साथ हीं तीसरा दिन भी मनाया जाएगा।नवरात्रि के दूसरे दिन देवी दुर्गा के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा की जाती है.और तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की लेकिन एक हीं दिन दोनों माता की पूजा होगी।मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत पवित्र और दिव्य है. मां का वर्णन शास्त्रों में ऐसी देवी के रूप में किया गया है, जो साधना और तपस्या की प्रेरणा देने वाली हैं. मां ब्रह्मचारिणी के एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में जलपात्र होता है. आइए जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी और मां चंद्रघंटा की पूजा विधि, भोग, मंत्र, शुभ रंग और कथा.
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र:
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:
ब्रह्मचारयितुम शीलम यस्या सा ब्रह्मचारिणी।
सच्चीदानन्द सुशीला च विश्वरूपा नमोस्तुते
या देवी सर्वभेतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
माता ब्रह्मचारिणी की आरती:
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।
मां ब्रह्मचारिणी की कथा:
शिवपुराण के अनुसार, मां पार्वती ने नारदजी की सलाह पर भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए एक हजार वर्षों तक फलों का सेवन किया था. इसके बाद उन्होंने तीन हजार वर्षों तक पेड़ों की पत्तियां खाकर तपस्या की. उनका तप देखकर सभी देवता, ऋषि-मुनि अत्यंत प्रभावित हुए और उन्होंने देवी को भगवान शिव को पति स्वरूप में प्राप्त करने का वरदान दिया. मां की इसी कठिन तपस्या के कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा था।
मां चंद्रघंटा का ध्यान मंत्र:
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्रयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

मां चंद्रघंटा की आरती:
जय मां चंद्रघंटा सुख धाम।
पूर्ण कीजो मेरे सभी काम।
चंद्र समान तुम शीतल दाती।
चंद्र तेज किरणों में समाती।
क्रोध को शांत करने वाली।
मीठे बोल सिखाने वाली।
मन की मालक मन भाती हो।
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।
सुंदर भाव को लाने वाली।
हर संकट मे बचाने वाली।
हर बुधवार जो तुझे ध्याये।
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाएं।
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं।
सन्मुख घी की ज्योत जलाएं।
शीश झुका कहे मन की बाता।
पूर्ण आस करो जगदाता।
कांची पुर स्थान तुम्हारा।
करनाटिका में मान तुम्हारा।
नाम तेरा रटू महारानी।
भक्त की रक्षा करो भवानी।
मां चंद्रघंटा की कथा:
पुराणों में जिस मां चंद्रघंटा के बारे में जिस कथा का जिक्र है उसके अनुसार देव लोक में जब असुरों का आतंक अधिक बढ़ गया था, तब देवी मां दुर्गा ने माता चंद्रघंटा का अवतार लिया. उस वक्त महिषासुर असुरों का स्वामी था. ये राक्षस देवराज इंद्र का सिंहासन पाना चाहता था. ये स्वर्गलोक पर राज करने की अपनी इच्छा को साकार करने के लिए तरह-तरह के हथकंड़े अपनाता था. जब देवताओं को उस राक्षस की इच्छा के बारे में पता चला तो वो सभी चिंतित होकर त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे।इसके बाद देवी चंद्रघंटा महिषासुर के पास गईं. माता का विशालकाय स्वरूप देखकर दैत्य महिषासुर इस बात को भांप चुका था कि अब उसका अंत निश्चित है. बावजूद इसके असुर ने मां चंद्रघंटा पर हमला करना शुरू कर दिया. भयंकर युद्ध के बाद में अंतत: महिषासुर काल के ग्रास में समा गया और देवी मां ने सभी देवताओं की रक्षा की।