आदिवासी वोटरों ने बीजेपी के साथ कर दिया खेल!सोरेन हीं बनेंगे किंग

झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनावों के नतीजों का एलान हो रहा है। यहां फिलहाल झामुमो नीत गठबंधन की सत्ता में वापसी होती दिख रही है। यहां इस बार दो चरणों में मतदान कराए गए थे। 13 और 20 नवंबर को मतदाताओं ने उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला ईवीएम में कैद कर दिया था। आज जब मतगणना हुई, तो पहले एनडीए आगे बढ़ता हुआ दिखाई दिया मगर जैसे-जैसे समय बीता सभी आंकड़े बदल गए। यहां विपक्षी गठबंधन (इंडिया ब्लॉक) सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रहता दिखाई दे रहा है।एक ओर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का पूरा प्रचार अभियान ‘घुसपैठिए’ पर केंद्रित रहा, तो दूसरी ओर मुख्य मुकाबला मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच बन गया था। यह स्थिति झारखंड के चुनाव को महाराष्ट्र से भिन्न थी, जहां कई स्थानीय कद्दावर नेता अपनी साख बचाने के लिए लड़ रहे थे। आइए जानते हैं कि झारखंड में इंडिया गठबंधन की जीत के बड़े कारण क्या रहे।मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कई निर्णय लिए, जिसने सीधे-सीधे उनके कोर वोटरों को टारगेट किया।

1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति का विधेयक, मॉब लिंचिंग रोकथाम से संबंधित विधेयक, निजी सेक्टर की नियुक्ति में भी झारखंड के लोगों के लिए आरक्षण, आदिवासियों और दलितों के लिए 50 की उम्र से ही वृद्धावस्था पेंशन की योजना, राज्यकर्मियों के लिए पुरानी पेंशन योजना की बहाली जैसे फैसले इसके उदाहरण हैं।झारखंड में भाजपा की स्थानीयता की नीति पर भाजपा के रुख से लोगों में नाराजगी रही है। पूर्व में रघुवर दास सरकार के दौरान जिस तरह से स्थानीयता की नीति में बदलाव किया गया था, उससे वहां के आम वोटरों खासकर आदिवासी समाज ने सही नहीं माना था। यही कारण था कि पहले 2019 के विधानसभा चुनावों में और अब 2024 के विधानसभा चुनावों में भी वोटरों ने झामुमो और हेमंत सोरेन पर विश्वास जताया।