नवरात्रि के आज पहला दिन होती है मां शैलपुत्री की पूजा,जानिए मंत्र,आरती और कथा

चैत्र नवरात्रि आज से शुरू हो रहे हैं और आज से ही हिंदू नववर्ष का प्रारंभ भी हो रहा है. चैत्र नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करके मां दुर्गा के पहले स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाती है. हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्रि की शुरुआत होती है और नवमी तिथि को समापन. शैल का अर्थ है – हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां के जन्म लेने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री कहा गया. माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ (बैल) है, इसलिए इन्हें वृषभारूढ़ा भी कहा जाता है. माता के इस स्वरूप की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और सभी दोष दूर होते हैं. आइए जानते हैं कलश स्थापना का मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र, आरती और महत्व…कलश स्थापना का पहला मुहूर्त है.सुबह 6 बजकर 15 मिनट से सुबह 10 बजकर 22 मिनट तक, कलश स्थापना की शुभ अवधि 4 घंटे 8 मिनट की है.दूसरा मुहूर्त अभिजित मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 01 मिनट से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट, कलश स्थापना की कुल अवधि 49 मिनट है।चैत्र नवरात्रि 2025 पहले दिन के शुभ समय है.प्रातः सन्ध्या: 05:04 ए एम से 06:13 ए एम तकअभिजीत मुहूर्त: 12:01 पी एम से 12:50 पी एम तकअमृत काल: 02:28 पी एम से 03:52 पी एमविजय मुहूर्त: 02:30 पी एम से 03:19 पी एम तकगोधूलि मुहूर्त: 06:37 पी एम से 07:00 पी एम तकसायाह्न सन्ध्या: 06:38 पी एम से 07:47 पी एम तकनिशिता मुहूर्त: 31 मार्च को 12:02 ए एम से 12:48 ए एम तक।चैत्र नवरात्रि 2025 पहले दिन के शुभ योग और नक्षत्रसर्वार्थ सिद्धि योग: 04:35 पी एम से मार्च 31 को 06:12 ए एम तकइन्द्र योग: प्रात:काल से 05:54 पी एम तकरेवती नक्षत्र: प्रात:काल से लेकर शाम 04:35 बजे तक, फिर अश्विनी नक्षत्र

कलश स्थापना सामग्री:
मिट्टी, मिट्टी का घड़ा, कलावा, जटा वाला नारियल, अशोक के पत्ते, जल, गंगाजल, लाल रंग का कपड़ा, एक मिट्टी का दीपक, मौली, अक्षत, हल्दी, फल, फूल.
शैलपुत्री पूजा मंत्र:
1- ॐ शं शैलपुत्री देव्यै नम:2- सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।
3- ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।
4- या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
5- नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’ का जप करें।
मां शैलपुत्री की आरती:
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
मां शैलपुत्री व्रत कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला किया. इसके लिए उन्होंने सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेज दिया, अपनी पुत्री सती और दामाद भगवान शिव को नहीं बुलाया. देवी सती उस यज्ञ में जाने के लिए बेचैन थीं, लेकिन भगवान शिव ने उन्हें बिना निमंत्रण के वहां जाने से मना किया. लेकिन सती माता नहीं मानी और अपनी हठ पर अड़ी रहीं. इसके बाद महादेव को विवश होकर उन्हें भेजना पड़ा।सती जब अपने पिता प्रजापति दक्ष के यहां पहुंची तो वहां किसी ने भी उनसे प्रेमपूर्वक व्यवहार नहीं किया. उनका और भगवान शिव का उपहास उड़ाया. इस व्यवहार से देवी सती बहुत आहत हुईं. वो अपने पति का अपमान बर्दाश्त नहीं कर पाईं और क्रोधवश वहां स्थित यज्ञ कुंड में बैठ गईं. जब शिव को ये बात पता चली तो वे दुख और क्रोध की ज्वाला में जलते हुए वहां पहुंचे और यज्ञ को ध्वस्त कर दिया. कहा जाता है कि इसके बाद देवी सती ने ही हिमालय पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया. हिमालय की पुत्री होने के नाते देवी पार्वती को शैलपुत्री के नाम से जाना गया।