चुनाव में मुस्लिम वोटों की कीमत बढ़ी या घट गई?जानिए इनसाइड स्टोरी
बिहार की आम आवाम क्या महागठबंधन पर भरोसा जताएगी या एनडीए पर,उनका विश्वास और आशीर्वाद किस गठबंधन को मिलेगा यह आने वाले नतीजे तय करेंगे..किसी भी गठबंधन या पार्टी की जीत हार में कई कारण होते हैं. जब सटीक सामाजिक समीकरण और बेहतर नरेटिव का ठीक ढंग से समन्वय होता है तब जाकर किसी पार्टी का नैया पार लगती हैं. बिहार विधान सभा चुनाव 2025 में बेरोजगारी पलायन, भ्रष्टाचार,स्वास्थ्य,शिक्षा, बाढ़ जैसे गंभीर मुद्दे नतीजे को प्रभावित करेंगे. लेकिन इन सभी विषयों से हटकर इस बात का भी चर्चा जोरों पर है कि क्या मुसलमान समाज इस बार महागठबंधन को एकमुश्त वोट करेंगे या पीछे विधानसभा की तरह कुछ क्षेत्रों में सेंध इस बार भी लगेगा?बिहार चुनाव की बात जब भी आती है तो एमवाई समीकरण की सबसे ज़्यादा चर्चा होती है. एम यानी मुस्लिम और वाई मतलब यादव. माई में सबसे अधिक भागीदारी किसी की है तो वह मुस्लिम समाज का. बिहार की कुल जनसंख्या की करीब 18 प्रतिशत की भागीदारी मुस्लिम समाज की है. महागठबंधन यानी राजद कांग्रेस को यह समाज दिल खोल कर वोट करती आ रही हैं. यह बात सौ आना सही है कि राहुल और तेजस्वी के साथ आने से मुस्लिम और यादव का समीकरण फिर से मजबूत हुआ है.अगर जनसुराज और एआईएमआईएम इस गठबंधन सेंध लगाने में सफल नहीं होते है तो निश्चित ही इसका फायदा महागठबंधन को होगा2023 की जाति आधारित सर्वे के मुताबिक बिहार में मुसलमानों की तादाद 17.7 फीसदी है. इसमें एक बड़ा हिस्सा सीमांचल में रहता है. जहां के ज्यादातर विधानसभा क्षेत्रों में 30 फीसदी या उससे अधिक वोटर मुसलमान हैं. जेडीयू और आरजेडी-कांग्रेस को पहले से उनका वोट मिलता रहा है.

हालांकि 2020 में एआईएमआईएम ने बड़ी सेंधमारी की थी. वहीं इस बार जन सुराज पार्टी के आने से सभी दलों के बेचैनी बढ़ गई है.के वोट को नहीं तोड़ पाती हैं, तो एनडीए के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी.पसमांदा समाज पर एनडीए की नजरबिहार की 17.7 फीसदी मुस्लिम आबादी में 10 फीसदी अति पिछड़ा (पसमांदा), 3 फीसदी पिछड़ा और 4 फीसदी अशराफ (सवर्ण) मुस्लिम हैं. हाल के सालों में पसमांदा पर एनडीए की विशेष नजर है. वक्फ संशोधन कानून के बाद बीजेपी और जेडीयू को लगता है कि पसमांदा मुसलमानों का समर्थन मिल सकता है.इन जिलों में निर्णायक वोटर:2011 जनगणना के मुताबिक किशनगंज में 68 फीसदी, कटिहार में 43 फीसदी, अररिया में 42 फीसदी, पूर्णिया में 38 फीसदी और दरभंगा में 25 फीसदी मुस्लिम आबादी हैं. सीमांचल की चार जिलों में विधानसभा की 24 सीटें हैं. इनमें से हर सीट पर मुस्लिम वोटर ही हार-जीत तय करते हैं.बिहार के कुल 243 विधानसभा क्षेत्रों में से 87 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी करीब 20 फीसदी से भी ज्यादा है. लगभग 11 ऐसी सीटें हैं, जहां मुस्लिम मतदाता 40 फीसदी के आसपास है. कुल मिलाकर करीब 40 से 50 सीटों की किस्मत मुस्लिम मतदाता तय करते हैं.विधानसभा चुनाव 2020 में सीमांचल के क्षेत्रों में महागठबंधन ने कुल 24 उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें 17 सीटों पर राजद को जीत मिली थी. पर राजद को को 7 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा. इन 7 सीटों में से 5 ओवैसी जितने में सफल रही.असल में एआईएमआईएम के साथ-साथ एनडीए ने भी खासकर सीमांचल और पसमांदा मुसलमानों के बीच पकड़ बनाने की कोशिश की, जिसकी वजह से कुछ सीटों पर वोट बंटा और आरजेडी को नुकसान हुआ. हालांकि कुछ समय बाद AIMIM के 5 में से 4 विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे.प्रशांत किशोर खुद को नए विकल्प के तौर पर प्रोजेक्ट करने में आरंभिक तौर पर सफल दिख रहे हैं और खासकर मुसलमानों को भी रिझाने में एक तरह से सफल होते दिख रहे है. चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर की नजर भी मुस्लिम मतों पर है. वह पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि कम से कम 40 सीटों पर मुसलमान प्रत्याशी उतारेंगे. साथ ही ये भी कह चुके हैं कि अगर महागठबंधन पहले ही उम्मीदवारों का नाम घोषित कर दे तो वह उन सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट नहीं देंगे, जहां से महाठबंधन का मुसलमान प्रत्याशी मैदान में होगा.आमतौर पर माना जाता है कि मुसलमानों का झुकाव आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों वाले महागठबंधन की ओर रहता है लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी बताते हैं. पिछली बार इन सीटों में से ज्यादातर पर एनडीए ने कब्जा जमाया था कहते हैं कि बिहार की कुल 51 मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों में से 2020 के चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगियों ने 35 सीटें जीती थीं. यानी एनडीए की स्ट्राइक रेट लगभग 70 फीसदी रही जो राज्य के बाकी इलाकों से कहीं ज्यादा थी. राष्ट्रीय राजनीति हो या बिहार की मुसलमानों ने दिल खोल कर वोट इंडिया गठबंधन के लिए करते आए है. खासकर बिहार की बात करे तो राजद कांग्रेस के वोट बैंक का मुख्य आधार M रहा है. पर जिस प्रकार से राजनैतिक भागीदारी मिलनी चाहिए वह मिलती हुईं नहीं दिख रही हैं. महागठबंधन के तरफ से तेजस्वी मुख्यमंत्री वही मुकेश सहनी उपमुख्यमंत्री के चेहरा घोषित किया गया है. पर 17 प्रतिशत आबादी वाले मुस्लिम वर्ग को लुभाने के लिए इस प्रकार की घोषणा नहीं की गई है. राजद में 143 लोगों की सूची में सिर्फ 18 मुस्लिम चेहरों को टिकट दिया हैं. दूसरी तरफ मुस्लिम समाज को साधने के लिए जनसुराज और AIMIM ने दिल खोलकर टिकट दिया..कितना नुकसान कर पाएंगे यह चुनाव के नतीजे ही तय करेंगे.अक्सर कई सर्वे लगातार ये दिखाते हैं कि बिहार के ज्यादातर मुस्लिम वोटर महागठबंधन के साथ रहते हैं. लेकिन असल नतीजे अक्सर इसके उलट दिखते हैं. संभव है कि कई सीटों पर कई मुस्लिम उम्मीदवारों के मैदान में उतरने से वोट बंट जाता है और इसी वजह से बीजेपी-एनडीए को फायदा मिल जाता है.